आधुनिक युग वैज्ञानिक युग है. इस युग में संयुक्त परिवार टूटता जा रहा है और परिवार छोटा होता जा रहा है. संयुक्त परिवार में सभी लोग अपना सुख दुःख बाँट लेते थे. इसके अतिरिक्त शहरीकरण भी बढ़ता जा रहा है. गांव का स्वरुप तो नष्ट होता जा रहा है. इस माहौल में मनुष्य मानसिक थकावट से निराश होता जा रहा है. अपने काम धंधे के अतिरिक्त उसके मन में मानसिक संतोष नहीं है. इस मानसिक संतोष के लिए ही हम पौराणिक साहित्य पढ़ते हैं. पौराणिक साहित्य में रामायण की कथा प्रमुख है. इस रामायण को आदिकवि बाल्मीकि ने लिखी थी. यह कथा आज भारत की सभी भाषाओँ में रूपांतर होकर प्रचलित है.
कहा जाता है कि बाइबिल विश्व कि अधिकांश भाषाओँ में अनूदित है. बाइबिल से भी अधिक बढ़कर राम-कथा जन-जन में प्रचलित है. भारत ही नहीं दक्षिण पूर्व एशिया के सभी भागों में राम-कथा प्रचलित है. राम-कथा ने क्यों इतनी प्रसिद्धि पाई है, यह एक विचारणीय बात है. निस्वार्थ की भावना को राम-कथा प्रचारित है. जब माता कैकेयी ने आदेश दिया कि राम को वनवास जाना चाहिए तो तुरंत राम तैयार हो गए. उन्हें राजगद्दी का मोह नहीं था. इस चरित्र से जनमानस अधिक प्रभावित होकर राम का गुणगान गाते हैं.
आज के ज़माने में बच्चे मनमानी करते हैं. अपने से बड़ों का आदर नहीं करते. बच्चे यह नहीं समझते हैं कि उनकी उन्नति के लिए ही माता-पिता अपना सब कुछ त्याग देते हैं. श्रीराम ने एक बार भी अपने पिता से यह नहीं पूछा कि किस कारण से उन्हें वनवास भेजा जा रहा है. इसके लिए उन्होंने अपने माता-पिता को दोषी नहीं ठहराया. वर्तमान प्रसंग में राम नाम का प्रचार अधिक हो रहा है. हमारे दैनं-दिन के कार्य कलापों में राम-नाम को हमने जोड़ लिया है.
यह मिथकीय कहानी हो या वास्तव में घटित हो, राम कहानी हमारे जीवन में घुल-मिल गई है. आसेतु कन्याकुमारी से हिमालय तक राम और शिव का नाम हमारे जीवन में ऐसे खप गया है जिससे हम विलग नहीं हो सकते. जब व्यक्ति बहुत दुखी और पीड़ित होता है तब वह राम को ही बुलाता है.
श्री राम ने अपने लिए कुछ नहीं चाहा. वे सर्वत्र परोपकारी के रूप में ही दर्शाये गए हैं. तड़का वध से प्रारम्भ होकर रावण वध तक की कहानी में दुष्ट-निग्रह, शिष्ट परिपालन का रूप ही दिखाई पड़ता है. विश्वामित्र ने राम को यही सिखाया कि अपने बारे में मत सोचो. जनकल्याण ही तुम्हारा लक्ष्य है.
जब वनवास प्रारम्भ हुआ तो राम चित्रकूट में आकर ठहरे. वहां लक्ष्मण के आक्रोश को देखकर राम निश्च्छल भाव से कहते हैं कि तुम्हारे मन में भारत के प्रति वैमनष्य का भाव है. उस वैमनष्य भाव को दूर हटाओ. यह आज के प्रसंग में कितना चरितार्थ होता है, यह हमें देखना है. हम अधिक पूर्वाग्रहित होकर किसी के बारे में गलत राय रखते हैं. राम एक आदर्श भाई थे. आज समाज के लोग चाहते हैं कि सभी सुख उन्हें मिले और दुःख दुसरे लोग अनुभव करें और कष्ट उठाएं. वनवास जाते समय राम ने अपने साथ लक्ष्मण और सीता को आने से रोका क्योंकि वे सभी कष्टों को स्वयं उठाना चाहते थे, सभी दुखों को वे ही भोगना चाहते थे. वे नहीं चाहते थे कि उनके साथ अन्य लोग भी कष्ट भोगें.
आधुनिक समाज में बिना सोचे समझे हम प्रतिद्वंदी से ईर्ष्या-द्वेष करने लगते हैं. पूर्वाग्रह के कारण मन में लालच-द्वेष और हिंसा की भावना बढ़ती है. ऐसा हमें नहीं होना चाहिए. यह बात हमें चित्रकूट के प्रसंग में परिलक्षित होता है.
शबरी की कहानी से दलित वर्ग की बात सामने आती है. दलित वर्ग समुदाय हमारे समाज के लिए कितनी सेवा करता है, वे हमें कितना प्यार करते हैं, परन्तु हम उन्हें उपेक्षित भाव से देखते हैं. वे भी मनुष्य हैं, उनके मन में भी हमारे प्रति सत्भावना है. यह तथ्य हमें शबरी कहानी से उद्भासित होता है. शबरी राम को जूते बेर खिलाती है और राम गदगद हो जाते हैं. यह वर्तमान प्रसंग में हमें अपने दायित्व के बारे में याद दिलाता रहता है. दलित वर्ग आज उपेक्षित, लांछित और आर्थिक तथा शैक्षणिक दृष्टि से बहुत ही दयनीय स्थिति में है. राम कथा हमको वर्तमान काल में दलितों के सुधारने की बात याद दिलाता है. इसीलिए गांधीजी ने हरिजनों के उद्धार को अपने रचनात्मक कार्यों में प्रमुख स्थान दिया. उनके लिए उंच, नीच, धनी-आमिर और सभी धर्म के अनुयायी एक ही थे. वे भारत में राम-राज्य स्थापित करना चाहते थे. परन्तु उनका यह सपना अधूरा ही रह गया.
आगे की कथाओं में हनुमान की कथा राम कथा से अभिन्न अंग है. हम राम से बढ़कर हनुमान की पूजा करते हैं, स्मरण करते हैं. यह क्यों? इसलिए कि वे राम से बढ़कर रामनाम पर जोर देते हैं. हनुमान की सेवा अद्वितीय है. जब राम से हनुमान की पहली मुलाकात होती है, उस पहली मुलाकात में सुग्रीव और बाली के चित्र प्रस्तुत होते हैं. राम प्रकट रूप से लक्ष्मण से कहते हैं कि यह बाली कैसा मनुष्य है? भाई की पत्नी का अपहरण करना अक्षम्य अपराध है. इसके लिए मृत्युदंड ही मिलना चाहिए. मैं बाली का वध करूँगा. यह आज के प्रसंग के लिए कितनी बड़ी बात है. परस्त्री को माँ समझना रामकथा से चरितार्थ होता है.
राम रावण के युद्ध में अनेक घटनाएं हमें याद आती हैं. कहा जाता है कि सुदूर दक्षिण भारत में रावण के महातम्य की चर्चा करते रहते हैं. यह कहानी बहुत ही प्रसिद्द है. यह 'कम्ब-रामायण' में भी दर्शित है. रावण मरणासन्न भूमि पर पड़ा है. पूरा शरीर राम के बाणों से छलनी हो गया. राम अंतिम बाण छोड़ते हैं और राम उस बाण को आदेश देते हैं कि तुम रावण के शरीर के अंदर पहुंचकर देखो तो सही कि रावण के ह्रदय में कहीं सीता का नाम अंकित है? वह बाण रावण के शरीर में प्रत्येक जगह खोजता है और अंत में राम के पैरों पर गिर पड़ता है और राम को मालूम होता है कि रावण के ह्रदय में कहीं भी सीता का नाम नहीं है. तब प्रश्न उठता है कि रावण ने सीता का अपहरण क्यों किया? उत्तर यही है कि राम ने रावण की बहिन शूर्पणखा का नाक छेदन कर अपमानित किया, इसलिए बदला लेने के लिए रावण ने सीता का अपहरण किया. इससे हमें क्या शिक्षा मिलती है. किसी भी स्त्री के प्रति घृणास्पद कार्य नहीं करना चाहिए. यह वर्तमान प्रसंग में राम के कार्यों से हमें ताकीद मिलती है.
विभीषण और कुम्भकरण दोनों रावण को समझाते हैं, लेकिन रावण नहीं मानता. उसके मन में बहिन के अपमान की बात और अहंभाव की भावना घर कर ली है. तब विभीषण राम के शरण में आ जाते हैं और कुम्भकर्ण शहीद हो जाते हैं. अपने से बड़े नेताओं के गलत कार्य करने पर निचले स्तर पर काम करने वाले अधिकारीयों का यह कर्त्तव्य होता है कि वे बड़े अधिकारियों के गलत कार्यों को इंगित करके बताना. उनके न मानने पर हमें उनके साहचर्य को छोड़ देना चाहिए. यही कुम्भकर्ण और विभीषण की कहानी से उभर का आती है.
इस राम कथा के माध्यम से वर्तमान जीवन की कई घटनाएं आँखों के सामने दिखाई पड़ती है. सर्वस्व छोड़कर त्याग की भावना हम राम से सीखते हैं. यह आज के भारतीय जीवन के लिए अति आवश्यक हैं. हमें अपने लिए नहीं दूसरों के लिए जीना चाहिए. पद के मोह के लिए और धन के लिए आज भाई-भाई की हत्या करते हैं. यह बहुत बुरी बात है. वर्तमान प्रसंग में श्री राम को बहुत बार याद दिलाकर यही कहते हैं कि जनता की सेवा ही जनार्दन की सेवा है. यह हमारे मन में उत्पन्न होना चाहिए. राम के जीवन से दलितों के उद्धार की भावना सीखते हैं. राम से बढ़कर राम नाम की महिमा को हम सब जानते हैं.
"वसुधैव कुटुंबकम की भावना को हम राम की कहानी से सीखते हैं. इसलिए वर्तमान प्रसंग में राम का जीवन हमें पग-पग में प्रेरणा देता रहता है. राम अतिमानव हैं. मैथिलीशरण गुप्त ने श्रीराम को सकते में पथ प्रदर्शक के रूप में चित्रित किया है. वास्तव में श्रीराम हमारे लिए पथ-प्रदर्शक हैं. वे एक आज्ञाकारी पुत्र, दलितों के उद्धारक, आदर्श भाई और एक पत्निव्रता तथा आदर्श नेता थे. उनके समान आज तक भारत में कोई आदर्श पुरुष नहीं हुआ. इसलिए हम आज हर पल उनका नाम स्मरण करते रहते हैं.
डॉ. राजलक्ष्मी कृष्णन (9840041576)
पता- २३-ए, लॅवेंडर अपार्टमेंट. मुनुसमय स्ट्रीट, विनुगमालक्कम, चेन्नई- 600092
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