अक्सर, पैसों/ वासना के कारन धरम, सच्चाई को बिकते देखा है इस छोटी उमर में,
बड़े-बड़ों, रसूखदारों और धनाढ्यों को ज़मीर की नीलामी करते पहचाना है एक नजर में,
औरत, अबला, शक्ति, कुलटा, मोहपाशिनी, पत्नी के नाम पर करते हैं जो इस्तेमाल उसे हर समर में,
छलने चल पड़े हैं आज फिर छलिये, उस धर्मरक्षिणी, त्यागमयी, तपस्विनी, योगिनी के डगर में.
(आज के नास्तिक और अधर्म-युग में धर्म की प्रतीक 'यशोदाबेन' को समर्पित)
-मिथिलेश
बड़े-बड़ों, रसूखदारों और धनाढ्यों को ज़मीर की नीलामी करते पहचाना है एक नजर में,
औरत, अबला, शक्ति, कुलटा, मोहपाशिनी, पत्नी के नाम पर करते हैं जो इस्तेमाल उसे हर समर में,
छलने चल पड़े हैं आज फिर छलिये, उस धर्मरक्षिणी, त्यागमयी, तपस्विनी, योगिनी के डगर में.
(आज के नास्तिक और अधर्म-युग में धर्म की प्रतीक 'यशोदाबेन' को समर्पित)
-मिथिलेश
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